आँखों ने बस देखा भर था,
मन ने उसको छाप लिया।
रंग पंखुरी, केसर टहनी, नस नस के सब ताने बाने,
उनमें कोमल फूल बना जो, भोली आँख उसे ही जाने,
मन ने सौरभ के वातायन से
असली रस भाँप लिया।
आँखों ने बस देखा भर था
मन ने उसको छाप लिया।
छवि की गरिमा से मंडित, उस तन की मानक ऊँचाई को,
स्नेह-राग से उद्वेलित उस मन की विह्वल तरुणाई को,
आँखों ने छूना भर चाहा,
मन ने पूरा नाप लिया।
आँखों ने बस देखा भर था,
मन ने उसको छाप लिया।
आँख पुजारी है, पूजा में भर अँजुरी नैवेद्य चढ़ाए,
वेणी गूँथे, रचे महावर, आभूषण ले अंग सजाए,
मन ने जीवन मंदिर में
उस प्रतिमा को ही थाप लिया।
आँखों ने बस देखा भर था,
मन ने उसको छाप लिया।
~ रवीन्द्र भ्रमर
Sep 30, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

















