Disable Copy Text

Thursday, November 5, 2015

कब कहा मैंने कि यह पहचान

कब कहा मैंने कि यह पहचान दो दिन की अमर हो
सांस इन बेहोश घड़ियों की न लौटे, बे - ख़बर हो
कब कहा मैंने कि मेरी याद की बुझती शमा पर
एक क्षण को भी तुम्हारी लाज से नीची नज़र हो

~ रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'

  Nov 5, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment