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Thursday, November 12, 2015

नियाज़-ओ-नाज़ के झगड़े मिटाये



नियाज़-ओ-नाज़ के झगड़े मिटाये जाते हैं
हम उन में और वो हम में समाये जाते हैं
*नियाज़-ओ-नाज़=सावधानी और गर्व

ये नाज़-ए-हुस्न तो देखो कि दिल को तड़पाकर
नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराये जाते हैं
*नाज़-ए-हुस्न=सुंदरता के नखरे

मेरे जुनून-ए-तमन्ना का कुछ ख़याल नहीं
लजाये जाते हैं दामन छुड़ाये जाते हैं
*जुनून-ए-तमन्ना=इच्छाओं का उन्माद

जो दिल से उठते हैं शोले वो अंग बन-बन कर
तमाम मंज़र-ए-फ़ितरत पे छये जाते हैं
*मंज़र-ए-फ़ितरत=प्रकृति के दृश्य

मैं अपनी आह के सदक़े कि मेरी आह में भी
तेरी निगाह के अंदाज़ पाये जाते हैं
*आह=कराह; सदक़े=न्योछावर

ये अपनी तर्क-ए-मुहब्बत भी क्या मुहब्बत है
जिन्हें भुलाते हैं वो याद आये जाते हैं
*तर्क-ए-मुहब्बत=प्रेम की समाप्ति

~ जिगर मुरादाबादी


  Nov 12, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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