Disable Copy Text

Friday, November 6, 2015

मेरी आँखों की पुतली में



मेरी आँखों की पुतली में
तू बनकर प्राण समा जा रे!

जिसके कन-कन में स्पन्दन हो,
मन में मलयानिल चन्दन हो,
करुणा का नव-अभिनन्दन हो
वह जीवन गीत सुना जा रे!

खिंच जाये अधर पर वह रेखा
जिसमें अंकित हो मधु लेखा,
जिसको वह विश्व करे देखा,
वह स्मिति का चित्र बना जा रे!

मेरी आँखों की पुतली में
तू बनकर प्राण समा जा रे!

~ जयशंकर प्रसाद


  Nov 6, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment