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Sunday, November 1, 2015

देर तक, दूर तक रहती है महक



देर तक, दूर तक
रहती है महक
जब तू चला जाता है,
कहाँ घटता है असर,
जब तू चला जाता है…

वो बेमिसाल सा लफ़्ज़ों का जाल,
खिजाँ को जो बना दे
जाँफिज़ा (आत्मिक सुख देने वाला)!

तमाम वो कलाम,
तेरे फुर्क़त (जुदाई) के काम...
जो भेजे मेरे नाम,
वो सारे ही पयाम,
बने रहते हैं बदस्तूर (पहले जैसे),
सब अपनी ही जगह!

उम्र कटती रहे,
घटती है कब कशिश (मोहकता) तेरी?
वक़्त जाता रहे,
बदली है कब रविश (चाल) तेरी?

कब उतरता है नशा,
जब तू चला जाता है
कहाँ होती है बसर,
कहाँ घटता है असर,
जब तू चला जाता है!

~ रेशमा हिंगोरानी


  Oct 30, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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