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Thursday, November 5, 2015

ग़ैर को मुंह लगा के देख लिया



ग़ैर को मुंह लगा के देख लिया
झूठ-सच आज़मा के देख लिया

कितनी फ़रहत-फ़ज़ा थी बू-ए-वफ़ा
उसने दिल को जला के देख लिया
*फ़रहत-फ़ज़ा=सुहानी; बू-ए-वफ़ा=वफ़ा की सुगंध

जाओ भी, क्या करोगे मेह्रो-वफ़ा
बारहा, आज़मा के देख लिया
*मेह्रो-वफ़ा=कृपा व प्रेम निर्वाह

है इधर आइना, उधर दिल है
जिसको चाहा, उठा के देख लिया

उसने सुबहे-शबे-विसाल मुझे
जाते जाते भी आ के देख लिया
*सुबहे-शबे-विसाल=मिलन रात्रि के बाद का सवेरा

'दाग़' ने ख़ूब आशिक़ी का मज़ा
जल के देखा, जला के देख लिया

~ दाग़ देहलवी


  Nov 5, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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