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Thursday, October 13, 2016

तुम्हारा शरीर

तुम्हारा शरीर
जब मुझ पर सहस्त्रधा
बरसता है,
मेरा मन वैसे नाचता है,
जैसे तेज़ बारिश में
एक पत्ती।


*सहस्त्रधा=हजार तरह से

~ नन्दकिशोर नवल

  Oct 12, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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