अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया
कि एक उम्र चले और घर नहीं आया।
*अज़ाब=मुसीबत
इस एक ख़्वाब की हसरत में जल-बुझी आंखें
वो एक ख़्वाब कि अब तक नज़र नहीं आया।
केरें तो किससे करें नारसाईयों का गिला
सफ़र-तमाम हुआ हमसफ़र नहीं आया।
*नारसाईयों=दुख-पीड़ा; गिला=शिकायत; सफ़र-तमाम=यात्रा की समाप्ति
दिलों की बात बदन की ज़बाँ से कह देते
यह चाहते थे मगर दिल इधर नहीं आया।
अजीब ही था मेरे दौर-ए-गुमराही का रफ़ीक
बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया।
*दौर-ए-गुमराही=भटकने का ज़माना; रफ़ीक=दोस्त
हरीम-ए-लफ़ज़-ओ-मुआनी से निसबतें भी रहीं
मगर सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं आया।
*हरीम-ए-लफ़ज़-ओ-मुआनी=शब्दों के अर्थ की दीवारें; निसबतें=सम्बंध;
सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर=बात कहने का ढंग
~ इफ़्तेख़ार आरिफ़
कि एक उम्र चले और घर नहीं आया।
*अज़ाब=मुसीबत
इस एक ख़्वाब की हसरत में जल-बुझी आंखें
वो एक ख़्वाब कि अब तक नज़र नहीं आया।
केरें तो किससे करें नारसाईयों का गिला
सफ़र-तमाम हुआ हमसफ़र नहीं आया।
*नारसाईयों=दुख-पीड़ा; गिला=शिकायत; सफ़र-तमाम=यात्रा की समाप्ति
दिलों की बात बदन की ज़बाँ से कह देते
यह चाहते थे मगर दिल इधर नहीं आया।
अजीब ही था मेरे दौर-ए-गुमराही का रफ़ीक
बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया।
*दौर-ए-गुमराही=भटकने का ज़माना; रफ़ीक=दोस्त
हरीम-ए-लफ़ज़-ओ-मुआनी से निसबतें भी रहीं
मगर सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं आया।
*हरीम-ए-लफ़ज़-ओ-मुआनी=शब्दों
सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर=बात कहने का ढंग
~ इफ़्तेख़ार आरिफ़
Oct 13, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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