आदमी के आज दुश्मन हैं बहुत
राम कम हैं और रावन हैं बहुत
छल रहे हैं अब भी सोने के हिरन
मुश्किलों में आज लछमन हैं बहुत
Oct 11, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
राम कम हैं और रावन हैं बहुत
छल रहे हैं अब भी सोने के हिरन
मुश्किलों में आज लछमन हैं बहुत
हों वो कलियाँ या कि नाज़ुक फूल हों
हादिसों में इनके बचपन हैं बहुत
जितनी सुविधाएं मिलीं इंसान को
उतनी उसके साथ उलझन हैं बहुत
सबके चेहरों पर मुखौटे हैं उधर
और अंधेरों में ये दर्पन हैं बहुत
मालियों ने उनको देखा ही नहीं
जंगलों जैसे ही उपवन हैं बहुत
सबके कमरे और चौखट हैं अलग
आंगनों में आज अनबन हैं बहुत
कंगनों को रास आती ही नहीं
चूड़ियों में वो जो खनखन हैं बहुत
हों वो मरुथल या जलाशय हों 'कुँअर'
सबकी ही आँखों में सावन हैं बहुत
~ कुँअर बेचैन
हादिसों में इनके बचपन हैं बहुत
जितनी सुविधाएं मिलीं इंसान को
उतनी उसके साथ उलझन हैं बहुत
सबके चेहरों पर मुखौटे हैं उधर
और अंधेरों में ये दर्पन हैं बहुत
मालियों ने उनको देखा ही नहीं
जंगलों जैसे ही उपवन हैं बहुत
सबके कमरे और चौखट हैं अलग
आंगनों में आज अनबन हैं बहुत
कंगनों को रास आती ही नहीं
चूड़ियों में वो जो खनखन हैं बहुत
हों वो मरुथल या जलाशय हों 'कुँअर'
सबकी ही आँखों में सावन हैं बहुत
~ कुँअर बेचैन
Oct 11, 2016| e-kavya.blogspot.com
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