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Monday, October 10, 2016

बे-सहारों का इंतिज़ाम करो




बे-सहारों का इंतिज़ाम करो
यानी इक और क़त्ल-ए-आम करो

ख़ैर-ख़्वाहों का मशवरा ये है
ठोकरें खाओ और सलाम करो

दब के रहना हमें नहीं मंज़ूर
ज़ालिमो जाओ अपना काम करो

ख़्वाहिशें जाने किस तरफ़ ले जाएँ
ख़्वाहिशों को न बे-लगाम करो

मेज़बानों में हो जहाँ अन-बन
ऐसी बस्ती में मत क़याम करो
*क़याम=ठहरना

आप छट जाएँगे हवस वाले
तुम ज़रा बे-रुख़ी को आम करो

ढूँडते हो गिरों पड़ों को क्यूँ
उड़ने वालों को ज़ेर-ए-दाम करो
*ज़ेर-ए-दाम=फँसाना

देने वाला बड़ाई भी देगा
तुम समाई का एहतिमाम करो
*समाई=बूता, सामर्थ्य; एहतिमाम=व्यवस्था

बद-दुआ दे के चल दिया वो फ़क़ीर
कह दिया था कि कोई काम करो

ये हुनर भी बड़ा ज़रूरी है
कितना झुक कर किसे सलाम करो

सर-फिरों में अभी हरारत है
इन जियालों का एहतिराम करो
*जियालों=बहादुरों

साँप आपस में कह रहे हैं 'हफ़ीज़'
आस्तीनों का इंतिज़ाम करो

~ हफ़ीज़ मेरठी

Oct 10, 2016 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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