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Monday, October 10, 2016

आवो, चलें हम साथ दो कदम



आवो, चलें हम
साथ दो कदम
हमकदम हों
दो ही कदम चाहे
दुनिया की कदमताल से छिटक

हाथ कहां लगते हैं मित्रों के हाथ
घड़ी-दो घड़ी को
घड़ीदार हाथ-जिनकी कलाई की नाड़ी से तेज
धड़कती है घड़ी
वक्त के जख्म़ से लहू रिसता ही रहता है लगातार

कहां चलते हैं हम कदम-दो कदम
उंगलियों में फंसा उंगलियां
उंगलियों में फंसी है डोर
सूत्रधार की नहीं
कठपुतलियों की
हथेलियों में फंसी है
एक बेलन
जिन्दगी को लोई की तरह बेलकर
रोटी बनाती

किनकी अबुझ क्षुधाएं
उदरम्भरि हमारी जिन्दगियां
भसम कर रही हैं
बेमकसद बनाए दे रही हैं
खास मकसद से
आवो, विचारें हम
माथ से जोड़कर माथ
दो कदम हमकदम हों हाथ से जोड़े हाथ

~ ज्ञानेन्द्रपति


  Oct 10, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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