फूल खिलते ही रहे, कलियाँ चटकती ही रहीं
दिल धड़क जाए तो हासिल? आँख भर आई तो क्या l
शाम सुलगाती चली आती है, ज़ख़्मों के चिराग़
कोई जाम आया तो क्या, कोई घटा छाई तो क्या l
काकुलें लहराईं, रातें महकीं, पैराहन उड़े
एक उनकी याद ऐसी थी, नहीं आई तो क्या l
दूरियाँ बढ़ती भी हैं, घटती भी हैं, मिटती भी हैं
साअतें आईं, यही साअत नहीं आई तो क्या l
*साअतें = क्षण
~ मख़्दूम मोहिउद्दीन
Oct 25, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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