रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन
चाँद चाँदनी की मुरझाई
छिपा चाँद यौवन का तुममें
आयु रागिनी भी अकुलाती
रह रहकर बिछुड़न के भ्रम में
जलते रहे स्नेह के क्षण ये
जीवन सम्मुख है ध्रुवतारा
तुम बुझने का नाम लेना
जब तक जीवन में अँधियारा
अपने को पीकर जीना है
हो कितना भी सूनापन
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन
तुमने विरहाकुल संध्या की
भर दी माँग अरुणिमा देकर
तम के घिरे बादलों को भी
राह दिखाई तुमने जलकर
तुम जाग्रत सपनों के साथी
स्तब्ध निशा को सोने देना
धन्य हो रहा है मेरा विश्वास
तुम्ही से पूजित होकर
जलती बाती मुक्त कहाती
दाह बना कब किसको बंधन
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन
~ रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'
Oct 29, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment