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Tuesday, October 4, 2016

धन्य प्रिया तुम जागीं




धन्य प्रिया तुम जागीं,
ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अंखियां लागीं।

जीवन नदिया, बैरी केवट, पार न कोई अपना
घाट पराया, देस बिराना, हाट-बाट सब सपना
क्या मन की, क्या तन की, किहनी अपनी अंसुअन पागी।

दाना-पानी, ठौर ठिकाना, कहां बसेरा अपना
निस दिन चलना, पल-पल जलना, नींद भई इक छलना
पाखी रूंख न पाएं, अंखियां बरस-बरस की जागी।

प्रेम न सांचा, शपथ न सांचा, सांच न संग हमारा
एक सांस का जीवन सारा, बिरथा का चौबारा
जीवन के इस पल फिर तुम क्यों जनम-जनम की लागीं।

धन्य प्रिया तुम जागीं,
ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अंखियां लागीं।

~ उदय प्रकाश


  Oct 4, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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