धन्य प्रिया तुम जागीं,
ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अंखियां लागीं।
जीवन नदिया, बैरी केवट, पार न कोई अपना
घाट पराया, देस बिराना, हाट-बाट सब सपना
क्या मन की, क्या तन की, किहनी अपनी अंसुअन पागी।
दाना-पानी, ठौर ठिकाना, कहां बसेरा अपना
निस दिन चलना, पल-पल जलना, नींद भई इक छलना
पाखी रूंख न पाएं, अंखियां बरस-बरस की जागी।
प्रेम न सांचा, शपथ न सांचा, सांच न संग हमारा
एक सांस का जीवन सारा, बिरथा का चौबारा
जीवन के इस पल फिर तुम क्यों जनम-जनम की लागीं।
धन्य प्रिया तुम जागीं,
ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अंखियां लागीं।
~ उदय प्रकाश
ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अंखियां लागीं।
जीवन नदिया, बैरी केवट, पार न कोई अपना
घाट पराया, देस बिराना, हाट-बाट सब सपना
क्या मन की, क्या तन की, किहनी अपनी अंसुअन पागी।
दाना-पानी, ठौर ठिकाना, कहां बसेरा अपना
निस दिन चलना, पल-पल जलना, नींद भई इक छलना
पाखी रूंख न पाएं, अंखियां बरस-बरस की जागी।
प्रेम न सांचा, शपथ न सांचा, सांच न संग हमारा
एक सांस का जीवन सारा, बिरथा का चौबारा
जीवन के इस पल फिर तुम क्यों जनम-जनम की लागीं।
धन्य प्रिया तुम जागीं,
ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अंखियां लागीं।
~ उदय प्रकाश
Oct 4, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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