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Thursday, October 27, 2016

अगर बहारें पतझड़ जैसा रूप बना



अगर बहारें पतझड़ जैसा रूप बना उपवन में आएँ
माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएँ ?

वातावरण आज उपवन का अजब घुटन से भरा हुआ है
कलियाँ हैं भयभीत फूल से, फूल शूल से डरा हुआ है
सोचो तो तुम, क्या कारण है दिल, दिल के नज़दीक नहीं है
जीवन की सुविधाओं का बँटवारा शायद ठीक नहीं है
उपवन में यदि बिना खिले ही कलियाँ मुरझाने लग जाएँ
माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएँ ?

यह अपनी-अपनी क़िस्मत है कुछ कलियाँ खिलती हैं ऊपर
और दूसरी मुरझा जातीं झुके-झुके जीवन भर भू पर
माना बदक़िस्मत हैं लेकिन, क्या वे महक नहीं सकती हैं
अगर मिले अवसर, अंगारे-सी क्या दहक नहीं सकती हैं ?
धूप रोशनी अगर चमन में ऊपर-ऊपर ही बँट जाएँ
माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएँ ?

काँटे उपवन के रखवाले अब से नहीं, ज़माने से हैं
लेकिन उनके मुँह पर ताले अब से नहीं, ज़माने से हैं
ये मुँह बंद, उपेक्षित काँटे अपनी कथा कहें तो किससे?
माली उलझे हैं फूलों से अपनी व्यथा कहें तो किससे?
इसी प्रश्न को लेकर काँटे यदि फूलों को ही चुभ जाएँ
माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएँ ?

सुनते हैं पहले उपवन में हर ऋतु में बहार गाती थी
कलियों का तो कहना ही क्या, मिट्टी से ख़ुश्बू आती थी
यह भी ज्ञात हमें उपवन में कुछ ऐसे भौंरे आए थे
सारा चमन कर दिया मरघट, अपने साथ ज़हर लाए थे
लेकिन अगर चमन वाले ही भौंरों के रंग-ढंग अपनाएँ
माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएँ ?

बुलबुल की क्या है बुलबुल तो जो देखेगी, सो गाएगी
उसकी वाणी तो दर्पण है असली सूरत दिखलाएगी
चूँकि आज बुलबुल पर गाने को रस डूबा गीत नहीं है
सारा चमन बना है दुश्मन कोई उसका मीत नहीं है
गाते-गाते यदि बुलबुल के गीत आँसुओं से भर जाएँ
माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएँ?

  Oct 27, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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