Disable Copy Text

Sunday, January 22, 2017

चलो हम दोनों चलें वहां

भरे जंगल के बीचो बीच,
न कोई आया गया जहां,
चलो हम दोनों चलें वहां।
जहां दिन भर महुआ पर झूल,
रात को चू पड़ते हैं फूल,
बांस के झुरमुट में चुपचाप,
जहां सोये नदियों के कूल;
हरे जंगल के बीचो बीच,
न कोई आया गया जहां,
चलो हम दोनों चलें वहां।
विहंग मृग का ही जहां निवास,
जहां अपने धरती आकाश,
प्रकृति का हो हर कोई दास,
न हो पर इसका कुछ आभास;
खरे जंगल के के बीचो बीच,
न कोई आया गया जहां,
चलो हम दोनों चलें वहां।

∼ पंडित नरेंद्र शर्मा



  May 29, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment