कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है।
वो न आए तो सताती है ख़लिश सी दिल को
वो जो आए तो ख़लिश और जवाँ होती है।
*ख़लिश=दर्द
रूह को शाद करे दिल को जो पुर-नूर करे
हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है।
*शाद=प्रसन्न; पुर-नूर=प्रकाशित; तनवीर=उजाला
ज़ब्त सैलाब-ए-मोहब्बत को कहाँ तक रोके
दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है।
*ज़ब्त=आत्मसंयम; सैलाब-ए-मोहब्बत=प्रेम का सागर; अयाँ=प्रत्यक्ष
ज़िंदगी एक सुलगती सी चिता है 'साहिर'
शोअ'ला बनती है न ये बुझ के धुआँ होती है।
~ साहिर होशियारपुरी
Jan 05, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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