इस धरती पर लाना है
हमें खींच कर स्वर्ग,
कहीं यदि उसका ठौर-ठिकाना है!
यदि वह स्वर्ग कल्पना ही हो
यदि वह शुद्ध जल्पना ही हो
तब भी हमें भूमि-माता को
अनुपम स्वर्ग बनाना है!
जो देवोपम है उसको ही, इस धरती पर लाना है!
और स्वर्ग तो भोग-लोक है
तदुपरान्त बस रोग-शोक है
हमें भूमि को योग-लोक का
नव अपवर्ग बनाना है!
जो कि देव-दुर्लभ है उसको, इस धरती पर लाना है!
बनना है हमको निज स्वामी
उर्ध्व वृत्ति सत्-चित्-अनुगामी
वसुधा सुधा-सिंचिता करके
हमें अमर फल खाना है
जो कि देव-दुर्लभ है उसको, इस धरती पर लाना है!
हैं आनंद-जात जन निश्चय
सदानंद में ही उनका लय
चिर आनंद वारि धाराएँ
हमें यहाँ बरसाना है
जो देवोपम है उसको ही, इस धरती पर लाना है!
~ बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
Jan 27, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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