ऐ दिल पहले भी तन्हा थे, ऐ दिल हम तन्हा आज भी हैं
और उन ज़ख़्मों और दाग़ों से अब अपनी बातें होती हैं
जो ज़ख़्म कि सुर्ख़ गुलाब हुए, जो दाग़ कि बदर-ए-मुनीर हुए
इस तरहा से कब तक जीना है, मैं हार गया इस जीने से
*बदर-ए-मुनीर=चमकता हुआ चाँद
कोई अब्र उड़े किसी क़ुल्ज़ुम से रस बरसे मिरे वीराने पर
कोई जागता हो कोई कुढ़ता हो मिरे देर से वापस आने पर
कोई साँस भरे मिरे पहलू में कोई हाथ धरे मिरे शाने पर
*अब्र=बादल; क़ुल्ज़ुम=समंदर; शाने=कंधे
और दबे दबे लहजे में कहे तुम ने अब तक बड़े दर्द सहे
तुम तन्हा तन्हा जलते रहे तुम तन्हा तन्हा चलते रहे
सुनो तन्हा चलना खेल नहीं, चलो आओ मिरे हम-राह चलो
चलो नए सफ़र पर चलते हैं, चलो मुझे बना के गवाह चलो
~ साक़ी फ़ारुक़ी
Jan 09, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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