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Wednesday, January 11, 2017

हसीनों से फ़क़त साहिब


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हसीनों से फ़क़त साहिब-सलामत दूर की अच्छी
न उन की दोस्ती अच्छी न उन की दुश्मनी अच्छी

ज़माना फ़स्ल-ए-गुल का और आग़ाज़-ए-शबाब अपना
अभी से तू ने तौबा की भी ऐ ज़ाहिद कही अच्छी
*फ़स्ल-ए-गुल=वसंत; आग़ाज़-ए-शबाब=यौवन की शुरुआत

जफ़ा-दोस्त उस को कहता है कोई कोई वफ़ा-दुश्मन
हमारे साथ तो उस ने निबाही दोस्ती अच्छी
*जफ़ा=अन्याय; वफ़ा=निष्ठा

तिरी ख़ातिर से ज़ाहिद हम ने तौबा आज की वर्ना
घड़ी भर ग़म ग़लत करने को बस वो चीज़ थी अच्छी
*ज़ाहिद=सांसारिकता से दूर ईश्वर का भक्त (जो शराब भी नहीं पीता है)

ज़ियादा ऐ फ़लक दे रंज-ओ-राहत हम को जो कुछ दे
न दो दिन का ये ग़म अच्छा न दो दिन की ख़ुशी अच्छी
*फ़लक=आकाश; रंज-ओ-राहत=दुख और आराम

कभी जब हाथ मल कर उन से कहता हूँ कि बे-बस हूँ
तो वो हँस कर ये कहते हैं तुम्हारी बेबसी अच्छी

जो सच पूछो हसीनों का हया ने रख लिया पर्दा
निकल चलते घरों से ये तो होती दिल-लगी अच्छी
*दिल-लगी=मनोरंजन

हम आएँ आप में या-रब वो जिस दम आएँ बालीं पर
हुजूम-ए-रंज-ए-तन्हाई से है ये बे-ख़ुदी अच्छी
*बालीं=छत; हुजूम=भीड़; रंज-ए-तन्हाई=दुख और अकेलेपन; बे-ख़ुदी=नशे की अवस्था

मोहब्बत के मज़े से दिल नहीं है आश्ना जिस का
न उस की ज़िंदगी अच्छी न उस की मौत ही अच्छी
*आश्ना=परिचित

उसे दुनिया की सौ फ़िक्रें हमें इक रंग-ए-नादारी
कहीं मुनइम की दौलत से हमारी मुफ़्लिसी अच्छी
*नादारी=गरीबी; मुनइम=अमीर; मुफ़्लिसी=गरीबी

ख़ुशी के ब'अद ग़म का सामना होना क़यामत है
जो ग़म के ब'अद हासिल हो वो अलबत्ता ख़ुशी अच्छी

न छूटेगी मोहब्बत ग़ैर की हम से न छूटेगी
अजी ये बात तुम ने आज तो खुल कर कही अच्छी

हमारे दीदा-ओ-दिल में हज़ारों ऐब निकलेंगे
तुम्हारा आइना अच्छा तुम्हारी आरसी अच्छी
*दीदा=आँख; आरसी=शीशा

कहे सौ शेर तुम ने सुस्त तो हासिल 'हफ़ीज़' इस का
ग़ज़ल हो चुस्त छोटी सी तो बैतों की कमी अच्छी
*बैत=किसी शेर या पद्य के दोनों चरण।

~ हफ़ीज़ जौनपुरी


  Jan 10, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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