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Friday, January 20, 2017

सूरज डूब गया बल्ली भर

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सूरज डूब गया बल्ली भर-
सागर के अथाह जल में।
एक बाँस भर उठ आया है-
चांद, ताड़ के जंगल में।

अगणित उँगली खोल, ताड़ के पत्र, चाँदनी में डोले,
ऐसा लगा, ताड़ का जंगल सोया रजत-छत्र खोले।
कौन कहे, मन कहाँ-कहाँ
हो आया, आज एक पल में।

बनता मन का मुकुर इंदु, जो मौन गगन में ही रहता,
बनता मन का मुकुर सिंधु, जो गरज-गरज कर कुछ कहता।
शशि बनकर मन चढा गगन पर,
रवि बन छिपा सिंधु तल में।

परिक्रमा कर रहा किसी की, मन बन चाँद और सूरज,
सिंधु किसी का हृदय-दोल है, देह किसी की है भू-रज।
मन को खेल खिलाता कोई,
निशि दिन के छाया-छल में।

एक बाँस भर उठ आया है
चांद, ताड़ के जंगल में।

~ नरेन्द्र शर्मा


  Jan 19, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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