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Friday, January 6, 2017

इक पल में इक सदी का मज़ा





































इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए
दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
*रफ़्ता रफ़्ता=धीरे धीरे

आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए

जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ
सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए
*ज़ौ=रौशनी, चमक

वो जान ही गए कि हमें उन से प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हम से पूछिए

हँसने का शौक़ हम को भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हम से पूछिए

हम तौबा कर के मर गए बे-मौत ऐ 'ख़ुमार'
तौहीन-ए-मय-कशी का मज़ा हम से पूछिए
*मय-कशी=शराब पीना

~ ख़ुमार बाराबंकवी


  Jan 06, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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