Disable Copy Text

Thursday, January 12, 2017

आओ कुछ राहत दें




आओ कुछ राहत दें इस क्षण की पीड़ा को
क्योंकि नये युग की तो बात बड़ी होती है
अपने हैं लोग यहाँ बैठो कुछ बात करो
मुश्किल से हीं नसीब ऐसी घड़ी होती है

दर्द से लड़ाई की काँटों से भरी डगर
एक शुरुआत करें आज रहे ध्यान मगर,
झूठे पैगम्बर तो मौज किया करते हैं
ईसा के हाथों में कील गड़ी होती है

हमराही हिम्मत से बीहड़ को पार करो
आहों के सौदागर तबकों पर वार करो
जिनको हम शेर समझ डर जाया करते हैं
अक्सर तो भूसे पर ख़ाल मढ़ी होती है

संकल्पों और लक्ष्य बीच बड़ी दूरी है
मन है मजबूर मगर कैसी मज़बूरी है,
जब तक हम जीवन की गुत्थी को सुलझाएँ
अपनी अगवानी में मौत खड़ी होती है

~ दिनेश मिश्र


  Jan 12, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment