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Saturday, January 21, 2017

मेरे पथ पर शूल बिछाकर

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मेरे पथ पर शूल बिछाकर
दूर खड़े मुस्काने वाले,
दाता ने संबंधी पूछे पहला नाम तुम्हारा लूंगा।

आंसू आहें और कराहें
ये सब मेरे अपने ही हैं,
चांदी मेरा मोल लगाए
शुभचिंतक ये सपने ही हैं।

मेरी असफलता की चर्चा
घर–घर तक पहुंचाने वाले
वरमाला यदि हाथ लगी तो इसका श्रेय तुम्ही को दूंगा।

सिर्फ उन्हीं का साथी हूं मैं
जिनकी उम्र सिसकते गुज़री,
इसीलिये बस अंधियारे से
मेरी बहुत दोस्ती गहरी।

मेरे जीवित अरमानों पर
हँस–हँस कफन उढ़ाने वाले
सिर्फ तुम्हारा क़र्ज चुकाने एक जनम मैं और जियूंगा।

मैंने चरण धरे जिस पथ पर
वही डगर बदनाम हो गयी,
मंजिल का संकेत मिला तो
बीच राह में शाम हो गई।

जनम जनम के साथी बन कर
मुझसे नज़र चुराने वाले,
चाहे जितना श्राप मुझे दो मैं सबको आशीश कहूंगा।

~ नरेंद्र दीपक


  Jan 21, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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