ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं
जिसने पाया कुछ बापू से वरदान नहीं?
मानव के हित जो कुछ भी रखता था माने
बापू ने सबको गिन-गिनकर,
अवगाह लिया।
बापू की छाती की हर साँस तपस्या थी
आती-जाती हल करती एक समस्या थी,
पल बिना दिए कुछ भेद कहाँ पाया जाने,
बापू ने जीवन के क्षण-क्षण को,
थाह लिया।
किसके मरने पर जगभर को पछताव हुआ?
किसके मरने पर इतना हृदय-माथव हुआ?
किसके मरने का इतना अधिक प्रभाव हुआ?
बनियापन अपना सिद्ध किया अपना सोलह आने,
जीने की कीमत कर वसूल पाई-पाई,
मरने का भी बापू ने मूल्य
उगाह लिया।
~ हरिवंशराय बच्चन
जिसने पाया कुछ बापू से वरदान नहीं?
मानव के हित जो कुछ भी रखता था माने
बापू ने सबको गिन-गिनकर,
अवगाह लिया।
बापू की छाती की हर साँस तपस्या थी
आती-जाती हल करती एक समस्या थी,
पल बिना दिए कुछ भेद कहाँ पाया जाने,
बापू ने जीवन के क्षण-क्षण को,
थाह लिया।
किसके मरने पर जगभर को पछताव हुआ?
किसके मरने पर इतना हृदय-माथव हुआ?
किसके मरने का इतना अधिक प्रभाव हुआ?
बनियापन अपना सिद्ध किया अपना सोलह आने,
जीने की कीमत कर वसूल पाई-पाई,
मरने का भी बापू ने मूल्य
उगाह लिया।
~ हरिवंशराय बच्चन
Jan 30, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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