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Sunday, January 15, 2017

उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही

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नाव चलती रही, सांझ ढलती रही,
उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही।

कौन सी रागनी बज रही है यहाँ
देह से अजनबी प्राण से अजनबी
क्या अजनबी रागनी के लिये
जिंदगी की त्वरा यूँ मचलती रही
नाव चलती रही, सांझ ढलती रही,
उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही।
त्वरा=शीघ्रता, तेज़ी

रुक गए यूँ कदम मुड़ के देखूँ ज़रा
है वहां अब भी ज़िंदा दिली ताज़गी
राह कोई भी पकड़ू वहाँ के लिये
राह हर एक बच कर निकलती रही
नाव चलती रही, सांझ ढलती रही,
उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही।

हर सुमन खिल रहा है बड़ी शान से
हर चमन उस पे सौ जान से है फ़िदा
तू सुमन भी नहीं, तू चमन भी नहीं
शाख पर एक मैना चहकती रही
नाव चलती रही, सांझ ढलती रही,
उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही।

धुप भी वही, चाँदनी भी वही
जिंदगी भी वही, बानगी भी वही
कौन जाने कि क्यों एक धुंधली परत
बीच में यूँ कुहासे सी तिरती रही
नाव चलती रही, सांझ ढलती रही,
उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही।

वृद्ध पापा हुए, माँ बहुत ढल गई
ज़िंदगी साँप सी फन पटकती रही
क्या हुआ एक पीढ़ी गुज़र भी गई
इक नई पौध उगती, उमगती रही
नाव चलती रही, सांझ ढलती रही,
उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही।

सत्य है वह सभी जो कि मैंने जिया
सत्य वह भी कि जो रह गया अन-जिया
कौन से तट, उतरना कहाँ है मुझे
एक पाती हवा में भटकती रही
नाव चलती रही, सांझ ढलती रही,
उम्र लहरों सी तट पर बिछलती रही।

∼ वीरबाला भावसार
 

  Jan 14, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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