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Sunday, January 22, 2017

हर इक क़दम पे ज़ख़्म नए खाए

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हर इक क़दम पे ज़ख़्म नए खाए किस तरह
रिंदों की अंजुमन में कोई जाए किस तरह
*रिंद=पीने वाला; अंजुमन=महफिल

सहरा की वुसअतों में रहा उम्र भर जो गुम
सहरा की वहशतों से वो घबराए किस तरह
*सहरा=रेगिस्तान; वुसअतों=विस्तार; वहशत=दरिंदगी

जिस ने भी तुझ को चाहा दिया उस को तू ने ग़म
दुनिया तिरे फ़रेब कोई खाए किस तरह

ज़िंदाँ पे तीरगी के हैं पहरे लगे हुए
पुर-हौल ख़्वाब-गाह में नींद आए किस तरह
*तीरगी=अंधेरा; पुर-हौल=डरावने; ख़्वाब-गाह=शयन गृह

ज़ंजीर-ए-पा कटी तो जवानी गुज़र गई
होंटों पे तेरा नाम-ए-'सबा' लाए किस तरह
*ज़ंजीर-ए-पा=पैरों की ज़ंजीर

~ सिब्त अली सबा


  Jan 22, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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