मुकाम ऐसा इक आता है राहे -जिन्दगानी में,
जहाँ मंजिल भी राहे-कारवां मालूम होती है।
~ हबीब अहमद सिद्दकी
Jul 13, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
जहाँ मंजिल भी राहे-कारवां मालूम होती है।
~ हबीब अहमद सिद्दकी
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