बूंद टपकी एक नभ से
किसी ने झुक कर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो
हँस रही-सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो
ठगा-सा कोई किसी की
आँख देखे रह गया हो
उस बहुत से रूप को
रोमांच रो के सह गया हो
बूंद टपकी एक नभ से
और जैसे पथिक छू
मुस्कान चौंके और घूमे
आँख उसकी जिस तरह
हँसती हुई-सी आँख चूमे
उस तरह मैंने उठाई आँख
बादल फट गया था
चंद्र पर आता हुआ-सा
अभ्र थोड़ा हट गया था
बूँद टपकी एक नभ से
ये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोखा बंद हो ले
और नूपुर ध्वनि झमक कर
जिस तरह द्रुत छंद हो ले
उस तरह
बादल सिमट कर
और पानी के हज़ारों बूंद
तब आएँ अचानक
~ भवानीप्रसाद मिश्र
Jul 20, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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