वह...,
अब मेरी प्रेमिका नहीं है।
हमें जोड़ने वाला पुल
बाहरी दबावों से टूट गया।
अब हम बिना देखे
एक दूसरे के सामने से निकल जाते हैं।
बहुत बुरे दिन हैं...कि मैं जिनकी कल्पना किए था
वे दुर्घटनाएँ
घटकर सच हो रही हैं !
वे जो बचाव के बहाने थे,
तनाव का कारण बन गए हैं।
आज सबसे अधिक ख़तरा वहाँ है
जो निरापद स्थान था।
यह नहीं कि मेरे विरुद्ध हो गए हैं सब लोग !
बल्कि मेरी कलम ही
मेरे हाथ में
मेरे विरुद्ध एक शस्त्र है।
मेरा साहित्य,
एक तंग और फटे हुए कोट की तरह
अब मेरी रक्षा नहीं करता।
चारों ओर से घिरकर
मैं एक समझौते के लिए
सहमत हो गया हूँ ।
वह...,
अब मेरी कविता नहीं है।
~ दुष्यंत कुमार
Aug 10, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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