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Thursday, August 4, 2016

आगाह अपनी मौत से कोई




आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस के हैं कल की ख़बर नहीं
**बशर=इंसान

आ जाएँ रोब-ए-ग़ैर में हम वो बशर नहीं
कुछ आप की तरह हमें लोगों का डर नहीं
*रोब-ए-ग़ैर=दूसरों का डर

इक तो शब-ए-फ़िराक़ के सदमे हैं जाँ-गुदाज़
अंधेर इस पे ये है कि होती सहर नहीं
*शब-ए-फ़िराक़=जुदाई की रात; जाँ-गुदाज़=सताई हुई ज़िंदगी

क्या कहिए इस तरह के तलव्वुन-मिज़ाज को
वादे का है ये हाल इधर हाँ उधर नहीं
*तलव्वुन-मिज़ाज=(गिरगिट की तरह) रंग बदलने वाली फितरत

रखते क़दम जो वादी-ए-उल्फ़त में बे-धड़क
‘हैरत’ सिवा तुम्हारे किसी का जिगर नहीं
*वादी-ए-उल्फ़त=प्रेम की वादी या घाटी

~ हैरत इलाहाबादी


Jul 16, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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