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Thursday, August 4, 2016

ये जो ज़िन्दगी की किताब है




ये जो ज़िन्दगी की किताब है
ये किताब भी क्या किताब है
कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है
कहीं जान-लेवा अज़ाब है
*अज़ाब=यातना, तकलीफ़

कहीं छाँव है कहीं धूप है
कहीं और ही कोई रूप है,
कई चेहरे इस में छुपे हुए
इक अजीब सी ये नक़ाब है

कहीं खो दिया कहीं पा लिया
कहीं रो लिया कहीं गा लिया,
कहीं छीन लेती है हर ख़ुशी
कहीं मेहरबान बेहिसाब है

कहीं आँसुओं की है दास्ताँ
कहीं मुस्कुराहटों का बयाँ,
कहीं बर्क़तों की है बारिशें
कहीं तिश्नगी बेहिसाब है
*बर्क़त=आशीष; तिश्नगी=प्यास

~ राजेश रेड्डी


Jul 30, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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