दिल में ऐसे उतर गया कोई
जैसे अपने ही घर गया कोई
एक रिमझिम में बस, घड़ी भर की
दूर तक तर-ब-तर गया कोई
आम रस्ता नहीं था मैं, फिर भी
मुझसे हो कर गुज़र गया कोई
दिन किसी तरह कट गया लेकिन
शाम आई तो मर गया कोई
इतने खाए थे रात से धोखे
चाँद निकला कि डर गया कोई
किसको जीना था छूट कर तुझसे
फ़लसफ़ा काम कर गया कोई
मूरतें कुछ निकाल ही लाया
पत्थरों तक अगर गया कोई
मैं अमावस की रात था, मुझमें
दीप ही दीप धर गया कोई
इश़्क भी क्या अजीब दरिया है
मैं जो डूबा, उभर गया कोई
~ सूर्यभानु गुप्त
Jul 28, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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