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Wednesday, August 10, 2016

भूली बिसरी चंद उम्मीदें, चंद फ़साने

भूली बिसरी चंद उम्मीदें, चंद फ़साने याद आये
तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये

दिल का चमन शादाब था फिर भी, ख़ाक सी उड़ती रहती थी
कैसे ज़माने ग़म-ए-जानां तेरे बहाने याद आये

ठंढी सर्द हवा के झोंके आग लगा कर छोड़ गए
फूल खिले शाखों पे नए और, दर्द पुराने याद आये

हंसने वालों से डरते थे, छुप छुप कर रो लेते थे
गहरी - गहरी सोच में डूबे दो दीवाने याद आये

~
रज़ी तिर्मिज़ी


Aug 05, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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