Disable Copy Text

Thursday, August 4, 2016

लो वही हुआ जिसका था डर



लो वही हुआ जिसका था डर,
ना रही नदी, ना रही लहर।

सूरज की किरन दहाड़ गई,
गरमी हर देह उघाड़ गई,
उठ गया बवंडर, धूल हवा में -
अपना झंडा गाड़ गई,
गौरइया हाँफ रही डर कर,
ना रही नदी, ना रही लहर।

हर ओर उमस के चर्चे हैं,
बिजली पंखों के खर्चे हैं,
बूढ़े महुए के हाथों से,
उड़ रहे हवा में पर्चे हैं,
"चलना साथी लू से बच कर".
ना रही नदी, ना रही लहर।

संकल्प हिमालय सा गलता,
सारा दिन भट्ठी सा जलता,
मन भरे हुए, सब डरे हुए,
किस की हिम्मत, बाहर हिलता,
है खड़ा सूर्य सर के ऊपर,
ना रही नदी ना रही लहर।

बोझिल रातों के मध्य पहर,
छपरी से चन्द्रकिरण छनकर,
लिख रही नया नारा कोई,
इन तपी हुई दीवारों पर,
क्या बाँचूँ सब थोथे आखर,
ना रही नदी ना रही लहर।

~ दिनेश सिंह


Jul 15, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment