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Friday, August 14, 2015

तुम मेरी गुलामी हो



तुम मेरी गुलामी हो और मेरी आजादी
तुम हो गर्मियों की एक आदिम रात की तरह जलती हुई मेरी देह
तुम मेरा देश हो
तुम हो हल्‍की भूरी आँखों में हरा रेशम
तुम हो विशाल, सुन्‍दर और विजेता
और तुम मेरी वेदना हो जो महसूस नहीं होती
जितना ही अधिक मैं इसे महसूस करता हूँ।

~ नाज़िम हिकमत


  Aug 14, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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