
तुम मेरी गुलामी हो और मेरी आजादी
तुम हो गर्मियों की एक आदिम रात की तरह जलती हुई मेरी देह
तुम मेरा देश हो
तुम हो हल्की भूरी आँखों में हरा रेशम
तुम हो विशाल, सुन्दर और विजेता
और तुम मेरी वेदना हो जो महसूस नहीं होती
जितना ही अधिक मैं इसे महसूस करता हूँ।
~ नाज़िम हिकमत
Aug 14, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment