
बहुत सम्भाल के रक्खी तो पाएमाल हुई
सड़क पे फेंक दी तो ज़िन्दगी निहाल हुई
*पाएमाल=रौंदी हुई
बड़ा लगाव है इस मोड़ को निगाहों से
कि सबसे पहले यहीं रोशनी हलाल हुई
कोई निज़ात की सूरत नहीं रही, न सही
मगर निज़ात की कोशिश तो एक मिसाल हुई
*निज़ात=छुटकारा
मेरे ज़ेहन पे ज़माने का वो दबाव पड़ा
जो एक स्लेट थी वो ज़िंदगी, सवाल हुई
*ज़ेहन=स्मरणशक्ति; याददास्त
समुद्र और उठा, और उठा, और उठा
किसी के वास्ते ये चांदनी वबाल हुई
उन्हें पता भी नहीं है कि उनके पाँवों से
वो खूँ बहा है कि ये गर्द भी गुलाल हुई
मेरी ज़ुबान से निकली तो सिर्फ नज़्म बनी
तुम्हारे हाथ में आई तो एक मशाल हुई
~ दुष्यन्त कुमार
Aug 28, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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