
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ,
जैसे रोटी को नमक में डुबोना और खाना,
जैसे तेज़ बुखार में रात में उठना
और टोंटी से मुँह लगाकर पानी पीना,
जैसे डाकिये से लेकर भारी डिब्बे को खोलना
बिना किसी अनुमान के कि उसमें क्या है
उत्तेजना, खुशी और सन्देह के साथ।
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
जैसे सागर के ऊपर से एक जहाज में पहली बार उड़ना,
जैसे मेरे भीतर कोई हरकत होती है
जब इस्ताम्बुल में आहिस्ता-आहिस्ता अँधेरा उतरता है।
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
जैसे ख़ुदा को शुक्रिया अदा करना -
हमें ज़िन्दगी अता करने के लिए।
~ नाज़िम हिकमत
Aug 13, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment