Disable Copy Text

Sunday, August 2, 2015

न उड़ा यूँ ठोकरों से

न उड़ा यूँ ठोकरों से, मेरी ख़ाक-ए-क़ब्र ज़ालिम
यही एक रह गई है मेरे प्यार की निशानी।

तुझे पहले ही कहा था, है जहाँ सराय-फ़ानी
दिल-ए-बदनसीब तूने मेरी बात ही ना मानी।

ये इनायत ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
मेरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी

*सराय-फ़ानी=अस्थायी रुकने की जगह जो आसानी से नष्ट की जा सके

~ सागर सरहदी

   Jul 29, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

No comments:

Post a Comment