गजरा टूटा
कजरा फैला
अस्त-व्यस्त हो गई बेडियाँ
बिंदिया सरकी
आँचल ढरका
धुली महावर लगी एड़ियाँ ।
साँसों की संतूर बजी थी
पायन की खनखन यारों
जेठ माह की भरी दुपहरी
बरस गया सावन यारो
कंगना खनका
संयम बहका
प्यासा-प्यासा मन भीगा ।
चूड़ी टूटी
बिछुआ सरका
और पाँव तक तन भीगा ।
बिखर गई बंधन की डोरी
निखर गया तन मन यारो
कुंकुंम फैला
रोली भीगी
अक्षत-चंदन गंध घुली ।
अलकें बोझिल
निद्रालस में
लगती हैं अधखुली-खुली
सांसों की वीणाएं गूंजी ।
दूर हुआ अनबन यारो
~ अजय पाठक
Aug 8, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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