Disable Copy Text

Sunday, August 2, 2015

तुम जन्नते कश्मीर हो

तुम जन्नते कश्मीर हो तुम ताज महल हो
'जगजीत' की आवाज़ में ग़ालिब की ग़ज़ल हो

हर पल जो गुज़रता है वो लाता है तिरी याद
जो साथ तुझे लाये कोई ऐसा भी पल हो

मिल जाओ किसी मोड़ पे इक रोज अचानक
गलियों में हमारा ये भटकना भी सफल हो

~ राजेंद्रनाथ रहबर

   Jul 30, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

No comments:

Post a Comment