तुम इतने समीप आओगे
मैने कभी नहीं सोचा था।
तुम यों आए पास कि जैसे
उतरे शशि जल-भरे ताल में
या फिर तीतरपाखी बादल
बरसे धरती पर अकाल में
तुम घन बनकर छा जाओगे
मैने कभी नहीं सोचा था।
यह जो हरी दूब है
धरती से चिपके रहने की आदी
मिली न इसके सपनों को भी
नभ में उड़ने की आजादी
इसकी नींद उड़ा जाओगे
मैने कभी नहीं सोचा था।
जिसके लिए मयूर नाचता
जिसके लिए कूकता कोयल
वन-वन फिरता रहा जनम भर
मन-हिरना जिससे हो घायल
उसे बाँध तुम दुलराओगे
मैने कभी नहीं सोचा था।
मैने कभी नहीं सोचा था
इतना मादक है जीवन भी
खिंचकर दूर तलक आए हैं
धन से ऋण भी,ऋण से धन भी
तुम साँसों में बस जाओगे
मैने कभी नहीं सोचा था।
~ बुद्धिनाथ मिश्र
Apr 21, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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