सहमा-सहमा सा इक साया, महकी-महकी सी इक चाप,
पिछली रात मेरे आँगन में आ पहुँचे वो अपने-आप।
ज़िक्र करें वो और किसी का बीच में आये मेरा नाम,
उनके होटों पर है अब तक मेरे प्यार की गहरी छाप।
अँधियारों की दीवारों को फाँद के चाँद कहाँ पहुँचा,
जहाँ पिया का आना मुश्किल और पलक झपकाना पाप।
बात करें तो रख देते हैं हैं लोग ज़ुबाँ पर अंगारे,
झूठ है मेरा कहना तो फिर सच ख़ुद बोलके देख लें आप।
ऊँघने वालों की आँखों में काँटा बनकर नीँद चुभे,
प्यारे साथी इस महफ़िल में कोई ऐसा राग अलाप।
जो भी देखे नफ़रत से मुँह फेर के आगे बढ़ जाये,
ये जीवन है या रस्ते में पड़ा हुआ बालक बिन बाप।
गली-गली आवारा अब तू मारा-मारा फिरे क़तील,
कहते हैं इक देवी की आँखों ने उसको दिया शराप।
~ क़तील शिफ़ाई
पिछली रात मेरे आँगन में आ पहुँचे वो अपने-आप।
ज़िक्र करें वो और किसी का बीच में आये मेरा नाम,
उनके होटों पर है अब तक मेरे प्यार की गहरी छाप।
अँधियारों की दीवारों को फाँद के चाँद कहाँ पहुँचा,
जहाँ पिया का आना मुश्किल और पलक झपकाना पाप।
बात करें तो रख देते हैं हैं लोग ज़ुबाँ पर अंगारे,
झूठ है मेरा कहना तो फिर सच ख़ुद बोलके देख लें आप।
ऊँघने वालों की आँखों में काँटा बनकर नीँद चुभे,
प्यारे साथी इस महफ़िल में कोई ऐसा राग अलाप।
जो भी देखे नफ़रत से मुँह फेर के आगे बढ़ जाये,
ये जीवन है या रस्ते में पड़ा हुआ बालक बिन बाप।
गली-गली आवारा अब तू मारा-मारा फिरे क़तील,
कहते हैं इक देवी की आँखों ने उसको दिया शराप।
~ क़तील शिफ़ाई
Mar 29, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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