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Wednesday, April 5, 2017

जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए

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जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?

जब न तुम से स्नेह के दो कण मिले‚
व्यथा कहने के लिये दो क्षण मिले।
जब तुम्हीं ने की सतत अवहेलना‚
विश्व का सम्मान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?

एक आशा एक ही अरमान था‚
बस तुम्हीं पर हृदय को अभिमान था।
पर न जब तुम ही हमें अपना सके‚
व्यर्थ यह अभिमान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?

दूं तुम्हें कैसे जलन अपनी दिखा‚
दूं तुम्हें कैसे लगन अपनी दिखा।
जो स्वरित हो कर न कुछ भी कह सकें‚
मैं भला वे गान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?

शलभ का था प्रश्न दीपक से यही‚
मीन ने यह बात दीपक से कही।
हो विलग तुम से न जो फिर भी मिटें‚
मै भला वे प्राण लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?

अर्चना निष्प्राण की कब तक करूं‚
कामना वरदान की कब तक करूं।
जो बना युग युग पहेली सा रहे‚
मौन वह भगवान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?

~ शांति सिंहल


  Mar 16, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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