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Wednesday, April 5, 2017

ज़र्रे का राज़ मेहर को

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ज़र्रे का राज़ मेहर को समझाना चाहिए,
छोटी सी कोई बात हो लड़ जाना चाहिए।
*ज़र्रे==छोटा सा अंश; मेहर==मोहब्बत

ख़्वाबों की एक नाव समुंदर में डाल के,
तूफ़ाँ की मौज मौज से टकराना चाहिए।
*मौज=लहर

हर बात में जो ज़हर के नश्तर लगाए हैं,
ऐसे ही दिल-जलों से तो याराना चाहिए।

क्या ज़िंदगी से बढ़ के जहन्नम नहीं कोई,
ये सच है फिर तो आग में जल जाना चाहिए।

दुनिया वो शाहराह है बचना मुहाल है,
पगडंडियों को ढूँढ के अपनाना चाहिए।
*शाहराह==हाइवे, बड़ी सड़क

नज़्में वो हों कि चीख़ पड़ें सारे अहल-ए-फ़न,
नींदें उड़ा दे सब की वो अफ़्साना चाहिए।
*अहल-ए-फ़न=कलाकार; अफ़्साना=कहानी

बहरों को तोड़ तोड़ के नाले में डाल दो,
बस दिल की लय में फ़िक्र को ढल जाना चाहिए।

ये कहकशाँ भी टूट के हो मिस्रओं में जज़्ब,
ज़ेहन-ए-रसा को इतना तो उलझाना चाहिए।
*कहकशाँ=आकाश गंगा; मिस्रओं=शेर की पंक्तियाँ; ज़ेहन-ए-रसा=सोचने वाला दिमाग

हम 'यूलिसीस' बन के बहुत जी चुके मगर,
यारो 'हुसैन' बन के भी मर जाना चाहिए।
*यूलिसीस=ग्रीक राजा जिसने ट्राय की लड़ाई लड़ी थी(लैटिन -ओडिसिस); हुसैन=हुसैन इब्न अली

~ बाक़र मेहदी


  Mar 22, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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