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Sunday, April 23, 2017

पत्ते झड़ते हर कोई देखे लेकिन

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पत्ते झड़ते हर कोई देखे लेकिन चर्चा कौन करे
रुत बदली तो कितनी बदली ये अंदाज़ा कौन करे

मन में जिसके खोट भरा है झूठ-कपट से नाता है
उनसे हमको न्याय मिलेगा ऐसी आशा कौन करे

सीधी अँगुली घी निकलेगा,आज तलक देखा न सुना
झूठे दावे करनेवालो, तुमसे झगड़ा कौन करे

बोल रहे इतिहास के पन्ने सीधी-सच्ची एक ही बात
धरती डाँवा-डोल हो जब कानून कि परवा कौन करे

ये चेहरे हैं इंसानों के कुछ तो अर्थ है ख़ामोशी का
सुनने वाले बहरे हैं बेकार का शिकवा कौन करे

अब हम भी हथियार उठाएँ भोलेपन में ख़ैर नहीं
राजमहल में डाकू बैठे उनसे रक्षा कौन करे

'रहबर' वह समय आ पहुँचा जब मरने वाले जीते हैं
ऐसे में क्या मौत से डरना, जीवन आशा कौन करे

~ हंसराज रहबर


  Apr 16, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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