मुझे नवम्बर की धूप की तरह मत चाहो
कि इस में डूबो तो तमाज़त में नहा जाओ
और इस से अलग हो तो
ठंडक को पोर पोर में उतरता देखो
मुझे सावन के बादल की तरह चाहो
कि उस का साया बहुत गहरा
नस नस में प्यास बुझाने वाला
मगर उस का वजूद पल में हवा
पल में पानी का ढेर
मुझे शाम की शफ़क़ की तरह मत चाहो
कि आसमान के क़ुर्मुज़ी रंगों की तरह
मेरे गाल सुर्ख़
मगर लम्हा-भर बाद
हिज्र में नहा कर, रात सी मैली मैली
मुझे चलती हवा की तरह मत चाहो
कि जिस के क़याम से दम घुटता है
और जिस की तेज़-रवी क़दम उखेड़ देती है
मुझे ठहरे पानी की तरह मत चाहो
कि मैं इस में कँवल बन के नहीं रह सकती हूँ
मुझे बस इतना चाहो
कि मुझ में चाहे जाने की ख़्वाहिश जाग उठे!
*तमाज़त=तीव्र गर्मी; शफ़क़=सूर्यास्त की लालिमा; क़ुर्मुज़ी=किरमिजी - लाल रंग; क़याम=रुकना
~ किश्वर नाहीद
Apr 12, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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