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Sunday, April 23, 2017

मैं मिट्टी का दीपक

Image may contain: fire, candles and night

मैं मिट्टी का दीपक, मैं ही हूँ उस में जलने का तेल,
मैं ही हूँ दीपक की बत्ती, कैसा है यह विधि का खेल!
तुम हो दीप-शिखा, मेरे उर का अमृत पी जाती हो-
जला-जला कर मुझ को ही अपनी तुम दीप्ति बढ़ाती हो।

तुम हो प्रलय-हिलोर, तुम्हीं हो घोर प्रभंजन झंझावात,
तुम ही हो आलोक-स्तम्भ, कर देती हो आलोकित रात।
मैं छोटी-सी तरिणी-सा तेरी लपेट में बहता हूँ-
फिर भी पथ-दर्शन की आशा से चोटें सब सहता हूँ।

~ अज्ञेय


  Apr 17, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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