Disable Copy Text

Sunday, April 23, 2017

कोठे उजाड़, खिड़कियाँ चुप,

Image may contain: 2 people, people sitting and indoor

कोठे उजाड़, खिड़कियाँ चुप, रास्ते उदास,
जाते ही उनके कुछ न रहा ज़िंदगी के पास।

दो पल बरस के अब्र ने दरिया का रुख़ किया,
तपती ज़मीं से पहरों निकलती रही भड़ास।

मिट्टी की सोंध जाते हुये साथ ले उड़ी,
डाली का लोच, पात की सब्ज़ी, कली की वास।

अश्कों से किसको प्यार है, आहों से किसको उन्स,
लेकिन ये दिल के जिसको खुशी आ सकी न रास।
*उन्स=प्रेम

हुशियार, ऐ नवेदे-अज़ल लुट न जाइयो,
फिरता है कोई आठ पहर, दिल के आस पास।
*नवेदे-अज़ल=मीत की पुकार

आँसू हो, मय हो, ज़हर हो, आबे-हयात हो,
जुज़ ख़ूने-आरज़ू, न मुझे ज़िंदगी की प्यास।
*आबे-हयात=अमृत जल; जुज़=सिवा

जैसे कभी तअल्लुके-ख़ातिर नहीं रहा,
यूँ रूठ कर चली गई शुहरत हर एक आस।
*तअल्लुके-ख़ातिर=दिली लगाव

~ शुहरत बुखारी


  Apr 10, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment