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Wednesday, April 5, 2017

शाएर साहब इस बस्ती में

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 शाएर साहब इस बस्ती में किसको गीत सुनाते हो,
सायों के सुनसान शहर में किसका दिल गरमाते हो।

सोने चाँदी की दुनिया में प्यार की क़ीमत क्या होगी,
दिल का खोटा सिक्का लेकर किस बाज़ार में जाते हो।

जलता सूरज तपती धरती ऊँची - नीची राहगुज़र,
अपने साए-साए चलकर पग-पग ठोकर खाते हो।

उड़ते बगुलो के पीछे क्यों दौड़ रहे हो रुक जाओ,
इस आबाद -ख़राबे में क्यों अपनी जान गँवाते हो।

तनहा- तन्हा, खोए- खोए, चुप-चुप रहने से हासिल,
कोने -कोने रो लेते हो दिल की आग बुझाते हो।

जिनपर तुमको नाज़ था वो भी बिक ग्ए दो कौड़ी के मोल,
अब भी वक़्त का रुख पहचानों वक़्त से क्यों टकराते हो।

ऐसे रौशन सूरज से तो रात के तारे ही अच्छे,
साथ न दे जो अँधियारे में क्यों उनके गुन गाते हो।

~ हिमायत अली शाएर


  Mar 31, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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